जय श्री सच्चिदानंद जी
श्री सदगुरु प्रेमियों ,
हरेक भूल कुछ न कुछ शिक्षा देती है...............
1. भूल करके आदमी सीखता तो है, पर इसका यह मतलब नहीं कि जीवन भर भूल ही करता जाए और कहे कि हम सीख रहे हैं।
2. पहले अपराध तो उनके हैं जो उन्हें करते हैं, दूसरे अपराध उनके हैं जो उन्हें होने देते हैं।
3. अपराध करने के पश्चात भय पैदा होता है और यही उसका दंड है।
4. गलती कर देना मामूली बात है, पर उसे स्वीकार कर लेना बड़ी बात है।
5. अन्याय करने वालों का अपराध जितना है, चुपचाप उसे बर्दाश्त करने वालों का अपराध क्या उससे कम है?
6. यदि मनुष्य सीखना चाहे तो उसकी हरेक भूल उसे कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य दे सकती है।
7. भूल होना स्वाभाविक है, पर अवसर आने पर उसको सबके सामने मानने की हिम्मत करना महापुरुषों का ही काम है।
8. यदि हम पुरानी भूल को नई तरह से केवल दोहराते रहें तो इसमें कोई वास्तविक लाभ नहीं।
9. जो जान गया कि उससे भूल हो गई और उसे ठीक नहीं करता, वह एक और भूल कर रहा है।
10. अपने दोष को स्वीकारना कोई अपमान नहीं है।
11. भूल करना मनुष्य का स्वभाव है, की हुई भूल को मान लेना और इस तरह आचरण रखना कि जिससे वह भूल न होने पाए मर्दानगी है।
12. यदि कोई मनुष्य अपमानपूर्वक मुझे अमृत पिलाए तो वह मुझे अच्छा नहीं लगता। इससे तो अच्छा है कि वह मुझे सम्मानपूर्वक विष दे दे और मैं मर जाऊं।
13. मनुष्य को अपनी गलती निसंकोच स्वीकार कर लेनी चाहिए। हठ पकड़ कर और छल करके उसे छिपाना नहीं चाहिए। छिपाने से वह विष-कण के समान अपना प्रभाव बढ़ाती ही जाएगी।
जय श्री सच्चिदानंद जी
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