जय श्री सच्चिदानंद जी
ज्ञान के आभाव में मनुष्य की सारी शक्तियां उसके भीतर यों ही निरुपयोगी पड़ी रहती है। सुषुप्त होने के कारण ये शीघ्र ही कुंठित होकर नष्ट हो जाती हैं। जिन शक्तियों के बल पर इंसान संसार में एक से एक बड़े काम कर सकता है, बड़ी से बड़ी साधनायें करके आध्यात्मिक तत्वज्ञान पा सकता है, स्वयं को भवबंधन से मुक्त कर सकता है, उन शक्तियों का यों ही नष्ट हो जाना सचमुच ही जीवन की सबसे बड़ी क्षति है। इस क्षति का दुर्भाग्य केवल इसलिए सहन करना पड़ता है, क्योंकि ज्ञानार्जन में प्रमाद किया गया। स्वाध्याय की उपेक्षा की गई। अज्ञान के कारण ही सारे भटकाव होते हैं। इसी वजह से जीवन के सत्य पथ पर चलना नहीं हो पाता है। मानव जीवन को सार्थक बनाने, उसका पूरा पूरा लाभ उठाने और आध्यात्मिक स्तिथि पाने के लिए सद्ज्ञान के प्रति जिज्ञासु होना ही चाहिए। साथ ही जिस तरह हो सके, उसकी प्राप्ति करना चाहिए। यह सौभाग्य हम सबके साथ स्वाभाविक रूप से जुड़ा है कि हमारे मार्गदर्शक हमें विरासत में सभी प्रकार का आवश्यक सद्ज्ञान दे गए है।
जय श्री सच्चिदानंद जी
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