जय श्री सच्चिदानंद जी
लक्ष्य के अभाव में हमारी 99 प्रतिशत शक्तियाँ इधर-उधर बिखरकर नष्ट हो जातीं हैं। आध्यात्मिक आदर्श के अभाव में हम अपनी अंतर्निहित दिव्यता एवं पूर्णता को भुलाकर देह-मन तक ही अपना परिचय मान बैठते हैं। हमारे समस्त दुःखों, कष्टों, और विषादों का मूल कारण यह आत्मविस्मृति ही है।
यह अज्ञान ही सब दुःखों-बुराइयों की जड़ है। इसी कारण हम स्वयं को पापी, दीन-हीन और दुष्ट-दरिद्र मान बैठे हैं और दूसरों के प्रति भी ऐसी ही धारणाएँ रखते हैं तथा इसका एकमात्र समाधान अपनी दिव्य प्रकृत्ति एवं आत्मशक्ति का जागरण है। आध्यात्मिक और मात्र आध्यात्मिक ज्ञान ही हमारे दुःख व मुसीबत को सदैव के लिये समाप्त कर सकता है।
जब समस्त शक्ति, समस्त समस्याओं के समाधान का स्त्रोत तुम्हारे अन्दर विध्यमान है, तो फिर सुख-भोगों और उपलब्धियों के पीछे यह अंतहीन भटकाव कैसा। कोल्हू के बैल की तरह न जाने तुम कितने जन्मों से इसी तरह बिन कुछ पाये भटक रहे हो। इन्द्रिय सुख एवं भोगों की इस अंधी दौड़ का कोई अन्त भी तो नहीं। अस्तित्व की पूरी आहुति देने पर भी यह आग शांत होने वाली नहीं।
जय श्री सच्चिदानंद जी
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