जय सच्चिदानंद जी
एक अवधूत बहुत दिनों से नदी के किनारे बैठा था, एक दिन किसी व्यकि ने उससे पुछा ंंआप नदी के किनारे बैठे-बैठे क्या कर रहे है अवधूत ने कहा, इस नदी का जल पूरा का पूरा बह जाए इसका इंतजार कर रहा हूँ.
व्यक्ति ने कहा यह कैसे हो सकता है. नदी तो बहती हीं रहती हैं सारा पानी अगर बह भी जाए तो, आपको क्या करना।
अवधूत ने कहा मुझे दुसरे पार जाना है | सारा जल बह जाए, तो मै चल कर उस पार जाऊगा।
उस व्यक्ति ने गुस्से में कहा, आप पागल नासमझ जैसी बात कर रहे है, ऐसा तो हो ही नही सकता।
तव अवधूत ने मुस्कराते हुए कहा, यह काम तुम लोगों को देख कर ही सीखा है. तुम लोग हमेशा सोचते रहते हो कि जीवन मे थोड़ी बाधाएं कम हो जाये ,कुछ शांति मिले, फलाना काम खत्म हो जाए, तो सेवा, साधन -भजन, सत्कार्य करेगें। जीवन भी तो नदी के समान है यदि जीवन मे तुम यह आशा लगाए बैठे हो, तो मैं इस नदी के पानी के पूरे बह जाने का इंतजार क्यों न करू।
नाम बड़ी ऊँची दौलत है , भाग्य से मिलता है, जो भाग्य से मिला है तो इसकी कदर करो। दबा कर कमाई करो, हमारा एक एक स्वांस करोड़ की कीमत का है , इसको ऐसे ही न खोवो। मैं हर समय तुम्हारे साथ हूँ। जिस दिन नाम देते है उस दिन से गुरूमुख के अंदर बैठ जाते है । गुरूमुख नहीं समझता यदि गुरूमुख कमाई करे तो देख ले।
बुले साह ने भी कहा है, असाँ ते वख नहीं ,देखन वाली अख नहीं बिना शौह थी, दूजा कख नहीं।।
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जय सच्चिदानंद जी
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