जय श्री सच्चिदानंद जी
एक संत बियाबान में झोपडी बना कर रहते थे। वे रह से गुजरने वाले पथिकों की सेवा करते और भूखों को भोजन कराया करते थे। एक दिन एक बूढ़ा व्यक्ति उस राह से गुजरा। उन्होंने हमेशा की तरह उसे विश्राम करने को स्थान दिया और फिर खाने की थाली उसके आगे रख दी। बूढे व्यक्ति ने बिना प्रभु स्मरण किये भोजन प्रारम्भ कर दिया। जब संत ने उन्हें याद दिलाया तो वे बोले - मैं किसी भगवान को नहीं मानता।
यह सुनकर संत को क्रोध आ गया और उन्होंने बूढ़े व्यक्ति के सामने से भोजन की थाली खीचकर उसे भूखा ही विदा कर दिया। उस रात उन्हें स्वप्न में भगवान के दर्शन हुए।
भगवान बोले - पुत्र ! उस वृद्ध व्यक्ति के साथ तुमने जो व्यव्हार किया, उससे मुझे बहुत दुःख हुआ।
संत ने आश्चर्य से पूछा - प्रभु! मैंने तो ऐसा इसलिए किया कि उसने आपके लिए अपशब्दों का प्रयोग किया।
भगवान बोले - उसने मुझे नहीं माना तो भी मैंने उसे आज तक भूखा नहीं सोने दिया और तुम उसे एक दिन का भी भोजन नहीं करा सके।
यह सुनकर संत की आँखों में अश्रु आ गए और स्वप्न टूटने के साथ उनकी आँखें भी खुल गयीं।
जय श्री सच्चिदानंद जी
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