जय श्री सच्चिदानंद जी
यह कथा महान सूफी संत फ़रीद के बारे में है. एक बार कोई राजा फ़रीद से मिलने के लिए आया और अपने साथ उपहार में सोने की एक बहुत सुंदर कैंची लाया जिसमें हीरे जड़े हुए थे. यह कैंची बेशकीमती, अनूठी और नायाब थी. राजा ने संत के पैर छुए और उन्हें वह कैंची सौंप दी.
फ़रीद ने कैंची को एक नज़र देखा और उसे राजा के हाथ में देकर बोले, “मेरे लिए उपहार लाने के लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार हूं. यह बहुत सुंदर है लेकिन मेरे लिए यह किसी काम की नहीं है. अच्छा होगा यदि आप मुझे इसके बदले एक सुई दे दें.”
राजा ने कहा, “मैं समझा नहीं. यदि आपको सुई की ज़रूरत है तो कैंची भी आपके काम आनी चाहिए.”
फ़रीद ने कहा, “मुझे कैंची नहीं चाहिए क्योंकि कैंची चीजों को काटती है, बांटती है, जबकि सुई चीजों का जोड़ती है. मैं प्रेम सिखाता हूं. मेरी तालीम की बुनियाद में प्रेम है – प्रेम लोगों को जोड़ता है, उन्हें बांधे रखता है. यह ऐसी सुई है जो लोगों को एक-दूसरे से जोड़ती है. कैंची मेरे लिए बेकार हैः यह काटती है… बांटती है. अगली बार आप जब आएं तो एक मामूली सुई ही लेकर आएं. मेरे लिए वही बड़ी चीज होगी.”
जय श्री सच्चिदानंद जी
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