जय श्री सचिदानंद जी
सामान्यतः शरण लेने में दुर्बलता, असफलता या अधीनता की भावना मानी जानी है। पर शरणागत होने का एक और पहले है जिसमें स्वाधीनता हैं। इसका अर्थ है सीमितता से असीमितता तक बढ़ना, सृष्टि के विशाल सागर में विलीन हो जाना। दुर्बल व्यक्ति शरणागत नहीं हो सकता। तब तुम तनाव, भय, चिंता और संकीर्णता को छोड़ देते हों, तो तुम्हारे भीतर स्वतंत्रता, वास्तविक आनंद और सच्चा प्रेम उदित होता है।
बोलो जैकारा बोलो मेरे श्री गुरु महाराज की जय, बोलो सच्चे दरबार की जय
जय श्री सचिदानंद जी
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